शिष्य से विद्यार्थी तक .................
मैंने कहीं पढ़ा था कि एक अच्छा शैक्षणिक संस्थान वही है जहा गुरु व शिष्य एक साथ ज्ञान कि खोज करते है। यहाँ मैंने शिक्षा अथवा सूचना शब्द न चुनकर ज्ञान को चुना है । सूचना एवं ज्ञान में भी भिन्नता है। सूचना अतीत से मिलती है, जबकि ज्ञान भीतर से प्रस्फुटित होता है। ज्ञान को गुरु ही प्रदान करता है । सूचना की एक अवधि होती है लेकिन ज्ञान सर्वकालिक होता है इसिलए गुरु का दायित्व ज्ञान के द्वारा अपने शिष्यों के चरित्र का निर्माण करना है। वास्तविक रूप में शिक्षा का आशय है ज्ञान, ज्ञान का आकांक्षी है - शिक्षार्थी और इसे उपलब्ध कराता है शिक्षक। तीनों परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर हैं। एक के बगैर दूसरे का अस्तित्व नहीं। संपूर्ण जगत में मात्र एक शिक्षक ही है जो समाज का कोई भी रोल अदा कर सकता है वह सखा है, पिता है, संरक्षक है, पथ-प्रदर्शक है, समाजसेवी है तो चाणक्य सामान राजनीतिकार भी है। अभी हाल ही में किसी राज्य के चुने हुये उम्दा, मेहनती और ज्ञानी शिक्षकों के समूह से मिलने का सौभाग्य मिला। बैठे बैठे सोच रहा था कि मेरे शिक्षक और आज के शिक्षक दोनों मे कोई भिन्नता नहीं है, दोनों अपने दायित्वों के प्रति