शिष्य से विद्यार्थी तक .................

मैंने कहीं पढ़ा था कि एक अच्छा शैक्षणिक संस्थान वही है जहा गुरु व शिष्य एक साथ ज्ञान कि खोज करते है। यहाँ मैंने शिक्षा अथवा सूचना शब्द न चुनकर ज्ञान को चुना है । सूचना एवं ज्ञान में भी भिन्नता है। सूचना अतीत से मिलती है, जबकि ज्ञान भीतर से प्रस्फुटित होता है। ज्ञान को गुरु ही प्रदान करता है। सूचना की एक अवधि होती है लेकिन ज्ञान सर्वकालिक होता है इसिलए गुरु का दायित्व ज्ञान के द्वारा अपने शिष्यों के चरित्र का निर्माण करना है। 

वास्तविक रूप में शिक्षा का आशय है ज्ञान, ज्ञान का आकांक्षी है - शिक्षार्थी और इसे उपलब्ध कराता है शिक्षक। तीनों परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर हैं। एक के बगैर दूसरे का अस्तित्व नहीं। संपूर्ण जगत में मात्र एक शिक्षक ही है जो समाज का कोई भी रोल अदा कर सकता है वह सखा है, पिता है, संरक्षक है, पथ-प्रदर्शक है, समाजसेवी है तो चाणक्य सामान राजनीतिकार भी है।

अभी हाल ही में किसी राज्य के चुने हुये उम्दा, मेहनती और ज्ञानी शिक्षकों के समूह से मिलने का सौभाग्य मिला। बैठे बैठे सोच रहा था कि मेरे शिक्षक और आज के शिक्षक दोनों मे कोई भिन्नता नहीं है, दोनों अपने दायित्वों के प्रति निष्ठावान हैं, फिर आखिर आज समाज शिक्षक को वो सम्मान क्यों नहीं दे रहा है। बहुत सोचा और मुझे यह महसूस हुआ कि शिक्षक थे, शिक्षक आज भी है, लेकिन शिक्षार्थी अब विधार्थी बन गया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि आज विद्यालय में विद्यार्थी पढ़ते नहीं हैं , बल्कि शिक्षक को पढ़ाते हैं। 

एक शिक्षक अपने आप में एक संस्थान होता है जिसका उद्देशय समाज का निर्माण करना होता है वह अगर निर्णय कर ले तो संसार के समस्त संसाधन व शक्तियां उसके उद्देश्य प्राप्ति में लग जाती है या ऐसा कहिये की वह समस्त संसाधन व शक्तियों को उत्पन्न कर सकता है. शिक्षक साधारण भेष में असाधारण व्यक्तित्व, विचार व शक्ति है.

शिक्षक शिक्षण छोड़कर अन्य समस्त गतिविधियों में संलग्न हैं। वह प्राथमिक स्तर का हो अथवा विश्वविद्यालयीन, उससे चुनाव, जनगणना, नेताओं के आगमन पर सड़क किनारे बच्चों की प्रदर्शनी लगवाने के अतिरिक्त अन्य सरकारी कार्य जो शिक्षण से विपरीत हैं, संपन्न करवाए जाते हैं। अक्सर ऐसा सुना जाता है कि शिक्षकों का शोषण हो रहा है। ये विडम्बना ही है कि शिक्षक को अपनी क्षमता का एहसास नहीं है अन्यथा समाज के शिल्पकार का शोषण करने का साहस न तो किसी में था और न होगा।  

वर्षभर उपेक्षा और प्रताड़ना सहन करने वाले कर्मवीर, ज्ञानवीर पराक्रमी और स्वाभिमानी शिक्षकों को 5 सितंबर को राष्ट्रीय राजधानी सहित देशभर में सम्मान प्रदान कर शिक्षक दिवस की औपचारिकता पूरी की जाती है। किसी महापुरुष ने कहा था, " निष्क्रिय समाज सक्रिय दुर्जनों से खतरनाक है
क्रमश:..........

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