औरत: पुरुष की नज़र में उसकी औकात
औरत नागरिक है. इस लोकतान्त्रिक देश में एक स्त्री पंचायत की, विधानसभा की, संसद आदि की दावेदार है, फिर भी उसके मन में कुछ तीखे सवाल क्यों उठते है? ऐसा क्या है जो अफसर, अधिकारी आदि पदों की प्राप्ति के बावजूद औरत को हमेशा नीचे पटक देता है? योग्यता, कौशल, क्षमता तथा अनुभव में एक स्त्री पुरुष से आगे है, फिर भी कहा जाता है की दो शब्दों में उसकी औकात बता देंगे. आखिर ऐसा कौन सा हथियार है जो उसकी औकात को स्पष्ट करता है?
हमारे संस्कारों की परंपरा में "मान्यता" एक बहुत बड़ा शब्द है, क्यूंकि जिन शब्दों को मान्यता में जोड़ा गया है, उन्हें आपराधिक नहीं माना जाता. जरा सोचिये पुरुषो द्वारा जो अपशब्द, गालियाँ दी जाती है, वो किसको संबोधित करती है? हम लोगो ने कभी इस पर चिंतन मनन नहीं किया. इसका कारण यह है की ये हमारे संस्कारों का एक हिस्सा है. जितनी भी गालियां गढ़ी गयी है, उनका सम्बन्ध सिर्फ औरत से ही होता है. जो गालियाँ पुरुष आपस में एक दुसरे को बड़ी कुशलता से देते है, वो ये नहीं सोचते की इससे माँ बहनों का शरीर क्षत-विक्षत होता है.
क्या हमारी राष्ट्रभाषा में गालियाँ देना कोई जुर्म नहीं है, और यदि है, तो इस पर रोक क्यों नहीं लगाई गयी है? कितना बड़ा फरेब लगता है अपना शिक्षित होना, योग्यता प्राप्त करना, अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना, जब कोई पुरुष उस स्त्री को शाब्दिक बलात्कार से गुजारने लगता है.
अब समय है की औरतो के नाम पर दी जाने वाली गालियों को अपराध माना जाना चाहिए. यदि ऐसा हुआ तो यह केवल एक छोटा सा सम्मान होगा माँ बहनों के लिए, और जो बताएगा उनकी असली औकात................
a deep thought...rquires deep enquiry...........quite intrstng 2 c...nic ya... :)
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