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मिड डे मिल : भारतीय शिक्षा का नया आयाम

       भारत गांवों का देश है आज भी देश की आधी आबादी से भी ज्यादा लोग गांव में रहते हैं और उनका मूल व्यवसाय खेती ही है। देश में शिक्षा का जितना भी प्रचार और प्रसार शहरों में हुआ है उसका 1 प्रतिशत भी इन गांवो में नहीं हुआ है। भारतीय सामाजिक वर्ण व्यवस्था की तरह ही शिक्षा में भी वर्ण व्यवस्था लागू है, मैं अच्छी शिक्षा के विरोध में नहीं हूं लेकिन मैं महंगी शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा के साथ हो रहे भेदभाव और उसके बाजारीकरण के विरूद्ध हूं, जिस तेजी से देश में मंहगे और इंटरनेशनल स्कूलों का चलन बढा है उस व्यवस्था ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को विभाजित कर दिया है, एक तरफ मंहगे दून और कान्वेंट स्कूल से निकलने वाले वो बच्चे हैं जिन्हें इस दौर वो शिक्षा दी जारही है जिसके बलबूते पर यह तय होता है कि उनके लिए मल्टीनेशनल कंपनी के उच्च वेतनमान के पद खाली है(या सिर्फ वे ही इस पद के लिए गढ़े गये है)जिनमें उन्हें मिलना वाला मासिक वेतन गांवों के स्कूलों से निकलने वाले बच्चों की साल भर की कमाई से भी ज्यादा है. इन स्कूलों,कालेजों से निकलने वाले युवाओं के लिए यह तय होता है कि भविष्य के सीईओ और एम...