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मिड डे मिल : भारतीय शिक्षा का नया आयाम

       भारत गांवों का देश है आज भी देश की आधी आबादी से भी ज्यादा लोग गांव में रहते हैं और उनका मूल व्यवसाय खेती ही है। देश में शिक्षा का जितना भी प्रचार और प्रसार शहरों में हुआ है उसका 1 प्रतिशत भी इन गांवो में नहीं हुआ है। भारतीय सामाजिक वर्ण व्यवस्था की तरह ही शिक्षा में भी वर्ण व्यवस्था लागू है, मैं अच्छी शिक्षा के विरोध में नहीं हूं लेकिन मैं महंगी शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा के साथ हो रहे भेदभाव और उसके बाजारीकरण के विरूद्ध हूं, जिस तेजी से देश में मंहगे और इंटरनेशनल स्कूलों का चलन बढा है उस व्यवस्था ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को विभाजित कर दिया है, एक तरफ मंहगे दून और कान्वेंट स्कूल से निकलने वाले वो बच्चे हैं जिन्हें इस दौर वो शिक्षा दी जारही है जिसके बलबूते पर यह तय होता है कि उनके लिए मल्टीनेशनल कंपनी के उच्च वेतनमान के पद खाली है(या सिर्फ वे ही इस पद के लिए गढ़े गये है)जिनमें उन्हें मिलना वाला मासिक वेतन गांवों के स्कूलों से निकलने वाले बच्चों की साल भर की कमाई से भी ज्यादा है. इन स्कूलों,कालेजों से निकलने वाले युवाओं के लिए यह तय होता है कि भविष्य के सीईओ और एम...

सजा या आत्महत्या

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        बच्चे स्कूल जाने से कतराते है, क्लास बंक करते है, अध्यापक से झूठ बोलते है. ऐसा क्यूँ? ये कुछ सवाल है, जो जितने छोटे है उतने ही जटिल भी. इसका कारण यह है की वे डरते है कि उन्हें सजा मिलेगी. हमारे परिवेश में यह माना जाता है की सजा जितनी अपमानजनक होगी, बच्चा उतना ही जल्दी सुधरता है. यह दौर आज भी जारी है.      स्कूलों आदि में सजा देने के दो तरीके हैं:- १- शारीरिक सजाएं :      (a) मुर्गा बनाना, हाथ ऊपर करके खड़ा करना, घुटने मोड़ देना और होमवर्क करना आदि      (b) तेज धूप में बहार खड़ा करना, मैदान के चक्कर लगवाना      (c) हाथ उल्टे करके स्केल या बेंत मरना, उंगली के बीच पेंसिल रखकर दबवाना आदि २- मानसिक सजा:       (a) फाइन लगाना, क्लास से बाहर निकाल देना     (b) लड़के को लड़की से या लड़की को लड़के से थप्पड़ मारना      (c) जूनियर क्लास के बच्चो से सेनिअर क्लास के बच्चो के कान खिचवाना        (d) क्लास में ज़मीन पर बैठाना आदि   ...

औरत: पुरुष की नज़र में उसकी औकात

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            औरत नागरिक है. इस लोकतान्त्रिक देश में एक स्त्री पंचायत की, विधानसभा की, संसद आदि की दावेदार है, फिर भी उसके मन में कुछ तीखे सवाल क्यों उठते है? ऐसा क्या है जो अफसर, अधिकारी आदि पदों की प्राप्ति के बावजूद औरत को हमेशा नीचे पटक देता है? योग्यता, कौशल, क्षमता तथा अनुभव में एक स्त्री पुरुष से आगे है, फिर भी कहा जाता है की दो शब्दों में उसकी औकात बता देंगे. आखिर ऐसा कौन सा हथियार है जो उसकी औकात को स्पष्ट करता है?           हमारे संस्कारों की परंपरा में  "मान्यता" एक बहुत बड़ा शब्द है, क्यूंकि जिन शब्दों को मान्यता में जोड़ा गया है, उन्हें आपराधिक नहीं माना जाता. जरा सोचिये पुरुषो द्वारा जो अपशब्द, गालियाँ दी जाती है, वो किसको संबोधित करती है? हम लोगो ने कभी इस पर चिंतन मनन नहीं किया. इसका कारण यह है की ये हमारे संस्कारों का एक हिस्सा है. जितनी भी गालियां गढ़ी गयी है, उनका सम्बन्ध सिर्फ औरत से ही होता है. जो गालियाँ पुरुष आपस में एक दुसरे को बड़ी कुशलता से देते है, वो ये नहीं सोचते की इससे म...