सजा या आत्महत्या

        बच्चे स्कूल जाने से कतराते है, क्लास बंक करते है, अध्यापक से झूठ बोलते है. ऐसा क्यूँ? ये कुछ सवाल है, जो जितने छोटे है उतने ही जटिल भी. इसका कारण यह है की वे डरते है कि उन्हें सजा मिलेगी. हमारे परिवेश में यह माना जाता है की सजा जितनी अपमानजनक होगी, बच्चा उतना ही जल्दी सुधरता है. यह दौर आज भी जारी है.
     स्कूलों आदि में सजा देने के दो तरीके हैं:-

१- शारीरिक सजाएं : 
    (a) मुर्गा बनाना, हाथ ऊपर करके खड़ा करना, घुटने मोड़ देना और होमवर्क करना आदि
     (b) तेज धूप में बहार खड़ा करना, मैदान के चक्कर लगवाना
     (c) हाथ उल्टे करके स्केल या बेंत मरना, उंगली के बीच पेंसिल रखकर दबवाना आदि
२- मानसिक सजा: 
     (a) फाइन लगाना, क्लास से बाहर निकाल देना 
   (b) लड़के को लड़की से या लड़की को लड़के से थप्पड़ मारना
     (c) जूनियर क्लास के बच्चो से सेनिअर क्लास के बच्चो के कान खिचवाना  
     (d) क्लास में ज़मीन पर बैठाना आदि

     कई बार सिर्फ चिढ के कारण अध्यापक बच्चो को बार बार अपमानित करने लगते है. यदि माता पिता आपत्ति उठाये तो अध्यापक बच्चे से बोलना बंद कर देते है, या और अधिक सजा देते है. 

     पिछले ४ सालो में २५००० से ज्यादा बच्चे भारत में खुदखुशी कर चुके है. जिसके पीछे का कारण है, कम मार्क्स आना, बड़े बच्चो द्वारा सताया जाना, अपमानजनक सजाये आदि. तमिलनाडु में एक बच्चे को इसलिए पीटा गया क्योंकि उसकी लिखावट बहुत धीमी थी. यही कारण था कि TAMILNAADU EDUCATION RULE  के नियम ५१ को पुनः संशोधित किया गया कि यदि किसी बच्चे को लिखने और समझने में दिक्कत होती है तो उसकी मदद कि जाये, उसे पीटा न जाये.

     सन २००१ में स्कुल में सजा के खिलाफ एक जनहित याचिका लगायी गयी जिसमे HON. DELHI HIGH COURT ने इन सजाओ को आर्टिकल २१ का उल्लंघन माना. लन्दन, आयेरलैंड, इटली, जापान आदि देशो में कारपोरल पनिशमेंट पूर्णतया बंद है.

     कहने के लिए स्कुलो में सजा तो बंद है, पर यह आज भी जारी है. आज के अध्यापको में इतना संयम नहीं है कि वो बच्चो को बिना सजा के पढ़ा सके. ये सब तभी संभव है जब अध्यापक अच्छा हो, और पढ़ना उसकी हौबी हो. दुर्भाग्य है कि भारत में अध्यापक चुने जाने का कोई आधार नहीं है, नियुक्तियां निष्पक्ष नहीं है और इसका परिणाम बच्चे भुगतते है.

    बच्चो द्वारा कि जाने वाली आत्महत्या के जिम्मेदार सिर्फ अध्यापक नहीं है, कही न कही माता पिता भी कारण है. उनके द्वारा किया जाने वाला उपेक्षित वयवहार , असहयोग, प्रेम न दर्शाना आदि बच्चो में निराशा उत्पन्न करते है. एक बच्चा अपने बात किसी को नहीं कह पाता और वह आत्महत्या को चुनता है.

    आज जरुरत है कि, स्कुल, माता पिता, अध्यापक आदि सभी बच्चो को सहयोग दें, तभी ये सब कम हो सकेगा. सिर्फ किसी कड़े क़ानून के बल पर इसे नहीं सुधार जा सकता.




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